CBSE (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) ने एक नया नियम बनाया है – अब जुलाई 2025 से हर CBSE स्कूल में ‘शुगर बोर्ड’ लगाना जरूरी होगा। इसका मकसद है बच्चों को ज्यादा चीनी खाने से होने वाली बीमारियों के बारे में बताना और उन्हें हेल्दी खाना अपनाने के लिए जागरूक करना।

 क्या है ये “शुगर बोर्ड”?

“शुगर बोर्ड” एक तरह की जानकारी वाली दीवार पर लगी पट्टी (Board) होगी जो बच्चों को ये बताएगी:

  •  रोज़ कितना मीठा खाना सही होता है।
  • बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक, कैंडी जैसी चीज़ों में कितनी चीनी होती है।
  •  ज्यादा मीठा खाने से कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती हैं – जैसे मोटापा, डायबिटीज़, दांतों की खराबी।
  • मीठे की जगह क्या हेल्दी चीजें खा सकते हैं – जैसे फल, नारियल पानी, ड्राई फ्रूट्स।

CBSE ने ऐसा कदम क्यों उठाया?

आजकल के बच्चे स्कूल में और घर में बहुत ज्यादा मीठा खाते हैं – कैंडी, चॉकलेट, पैकेज्ड जूस, केक आदि। इसकी वजह से बच्चों में छोटी उम्र में ही मोटापा, सुस्ती, पेट की समस्या और डायबिटीज़ जैसी परेशानियाँ बढ़ रही हैं। CBSE का कहना है कि अगर हम बच्चों को अभी से ये बातें सिखाएँ, तो वो आगे चलकर स्वस्थ और समझदार नागरिक बनेंगे।

स्कूलों में क्या होगा बदलाव?

CBSE ने सभी स्कूलों से कहा है कि:

  • स्कूल में बच्चों के आने-जाने वाले रास्तों पर या कैंटीन के पास शुगर बोर्ड लगाना जरूरी होगा।
  • बोर्ड पर साफ-साफ बताया जाए कि कौन सी चीज़ में कितनी चीनी होती है।
  • स्कूल में मीठे और जंक फूड की बिक्री कम या बंद की जाए।
  • समय-समय पर बच्चों के लिए हेल्थ अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाएं।

 चंडीगढ़ और कुछ राज्यों ने क्या किया?

चंडीगढ़ प्रशासन ने ये आदेश पहले ही दे दिया है कि 1 जुलाई 2025 से सभी स्कूलों में शुगर बोर्ड होना चाहिए। इसके साथ-साथ स्कूलों में मीठे पेय और फास्ट फूड बेचने पर भी रोक लगेगी।

 डॉक्टर और विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है:

“चीनी जितनी मीठी लगती है, उतनी ही खतरनाक हो सकती है अगर ज्यादा खाई जाए। बच्चों में ये आदत शुरू से ही सुधारी जाए तो उनका भविष्य बेहतर होगा।”

माता-पिता को क्या करना चाहिए?

  • बच्चों को ज्यादा चॉकलेट, मिठाई या जूस देने की बजाय फल और घर का बना खाना दें।
  • खुद भी बच्चों के सामने अच्छी आदतों की मिसाल बनें।
  • बच्चों को समझाएँ कि पैकेट वाली चीजों के लेबल कैसे पढ़ें – ताकि वे जान सकें उनमें कितनी चीनी है।

कुछ चौंकाने वाले आँकड़े:

  • भारत में हर 5 में से 1 बच्चा मोटापे का शिकार है।
  • 10 में से 3 बच्चे रोज़ तय सीमा से ज्यादा चीनी खा रहे हैं।
  • टाइप-2 डायबिटीज़ जैसी बीमारी अब बचपन में भी देखी जा रही है।

शुगर बोर्ड’ से क्या फायदे होंगे?

CBSE का यह कदम बच्चों की सेहत के लिए एक बहुत ही जरूरी पहल है। स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड’ लगने से बच्चों को यह आसानी से समझ में आएगा कि वे जो चीजें खाते-पीते हैं, उनमें कितनी चीनी होती है और वह उनके शरीर पर क्या असर डालती है। इससे बच्चों में स्वस्थ खाने की आदतें विकसित होंगी।

बच्चे जब देखेंगे कि एक कोल्ड ड्रिंक में 6-7 चम्मच तक चीनी होती है, तो वे खुद ही उसका विकल्प तलाशेंगे, जैसे – पानी, नारियल पानी या नींबू पानी। इससे मोटापा, डायबिटीज़ और दाँतों की समस्याओं जैसी बीमारियों से बचाव होगा। साथ ही, स्कूल में एक स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण बनेगा, जहाँ बच्चे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी जागरूक होंगे।

कुल मिलाकर, यह एक छोटा लेकिन प्रभावशाली कदम है जो बच्चों के पूरे जीवन को बेहतर बना सकता है।

निष्कर्ष – एक जरूरी और अच्छा कदम

CBSE का यह फैसला बच्चों की सेहत को ध्यान में रखते हुए लिया गया बहुत ही जरूरी और सराहनीय कदम है। अगर देश के और भी स्कूल और राज्य सरकारें इसे अपनाएँ, तो आने वाली पीढ़ियाँ बीमारियों से दूर और फिट इंडिया की दिशा में आगे बढ़ेंगी।

आप क्या कर सकते हैं?

अगर आप एक पैरेंट, टीचर या स्टूडेंट हैं, तो अपने स्कूल में इस बदलाव की तैयारी शुरू करें। अगर स्कूल में अब तक ‘शुगर बोर्ड’ नहीं आया है, तो प्रिंसिपल या मैनेजमेंट से बात करें। यही जागरूकता हमारे बच्चों को स्वस्थ भविष्य दे सकती है।

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